सुना था मेरे बड़ों से,
चिड़िया खेत चुग जाये,
फ़ायदा नही रोनेसे!
ये कहावत चली आयी
गुज़रती हुई सदियों से,
ना भाषाका भेद
ना किसी देशकाही
खेत बोए गए,
पँछी चुगते गए,
लोग रोते रहे
इतिहास गवाह है
सिलसिला थमा नही
चलताही रहा
चलताही रहा !
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5 comments:
achchi hai.
bahut badiya likha hai
silsila thama nahi
chalta hi raha
chalta hi raha
सुन्दर भाव!
फ़िर गुस्ताखी कर रहा हूं अपना हक जैसा मान कर आप के Blog पर फ़िर लिख दिया, जो दिल किया!पर "सच में" बात दिल से कही हुई है! उम्मीद है इसे भी ’कविता’ के पाठकों से पहले जैसा ही प्यार मिलेगा!
आप सब को नये साल की शुभकामनायें!
अपने नसीब का हर दाना मिलना है चिडिया को
कोई देश, कोई भाषा इसमें बाधा नहीं बन सकती
अच्छी रचना है
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
सच है जिसकी किस्मत में जो है मिलेगा ......... पछताने से क्या होता है .........
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