Wednesday, January 20, 2010

माँ!

मिलेगी कोई गोद यूँ,
जहाँ सर रख लूँ?
माँ! मै थक गयी हूँ!
कहाँ सर रख दूँ?

तीनो जहाँ ना चाहूँ..
रहूँ, तो रहूँ,
बन भिकारन रहूँ...
तेरीही गोद चाहूँ...

ना छुडाना हाथ यूँ,
तुझबिन क्या करुँ?
अभी एक क़दम भी
चल ना पायी हूँ !

दर बदर भटकी है तू,
मै खूब जानती हूँ,
तेरी भी खोयी राहेँ,
पर मेरी तो रहनुमा तू!
(maa pe likhe aalekh me yah rachana likhi thee)

8 comments:

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बेहद भावुक कर देने वाली रचना. सुन्दर.

Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " said...

जीवन का सुन्दरतम क्षण, सिर हो माँ की गोदी में.
बालों में अंगुलियाँ हों, नींद आ जाये गोदी में.
नींद आये गोदी में, शीतल बयार भीनी-भीनी.
सपना एक मीठा सा आकर, काया करदे भीनी.
कह साधक सबके ही मनका भाव है यह सुन्दरतम.
सिर हो माँ की गोदी में, क्षण जीवन का सुन्दरतम.

Yogesh Verma Swapn said...

hriday sparshi rachna.

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

शमा साहिबा, आदाब
मां के पाकीज़ा रिश्ते का कोई विकल्प हो ही नहीं सकता
बेहद भावपूर्ण नज्म है आपकी
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

"Sonu Chandra "UDAY" said...

मिलेगी कोई गोद यूँ,
जहाँ सर रख लूँ?
माँ! मै थक गयी हूँ!
कहाँ सर रख दूँ?



Rashmi ji


Bhavnathmak Rachana


Bilkool Maan ki Tarah

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

Vaah!Kamaal Ki abhivyakti!

Pushpendra Singh "Pushp" said...

सुन्दर भाव लिए अच्छी रचा
बहुत बहुत आभार

दिगम्बर नासवा said...

मिलेगी कोई गोद यूँ,
जहाँ सर रख लूँ?
माँ! मै थक गयी हूँ!
कहाँ सर रख दूँ?...

माँ ......... बस एहसास ही काफ़ी है ......... सुंदर रचना .......