Monday, July 6, 2009

कौन डगर,ये कैसा सफर?

डरे, कुम्हलाये मनको क्या पता था?
ये डगर क्या , कौनसा रास्ता था?
वो किस मंजिल की ओर चली थी?
कौन शहर ,किस दिशा सफ़र चला ?
उसके पीका घर था, या बंदीशाला?
मनको क्या पता था?

किसे था, इंतज़ार उसका ?
आगे सपने थे या,
इक संसार पीड़ा का?
शर्मीली दुल्हन, पलकोंमे डर था,
आँसू छलकाना,या,
खुलके हँसना ,दोनों मना था !
सफर आगे, आगे चला था,
मनको क्या पता था?

मन बचपन में रुका पड़ा था,
वो नन्हीं, नन्हीं पग डंडियाँ,
उसे थामने दौड़ते दादा,
भूल पाना,क्या मुमकिन था..?
वो बाबुलकी सखियाँ, वो गलियाँ?
मनको कहाँ पता था?

मन पीछे, पीछे भाग रहा था,
अनजान डर जिसे घेर रहा था...
भयभीत मन, भरमा रहा था,
पीका नगर अब आ रहा था,
पीका नगर था , आनेवाला....
मनको कहाँ पता था??

एक चकित भरमाई दुल्हन की मनोदशा...जैसे नौका ने एक किनारा तो छोड़ दिया था...पर किस दिशा वो बह चली थी, कहाँ उसका दूसरा साहिल था, उसे ख़बर कहाँ?...?

7 comments:

Anonymous said...

sajeev-sundar chitran !!!

Neeraj Kumar said...

मन पीछे, पीछे भाग रहा था,
अनजान डर जिसे घेर रहा था...
भयभीत मन, भरमा रहा था,
पीका नगर अब आ रहा था,
पीका नगर था , आनेवाला....
मनको कहाँ पता था??


उलझन को बखूबी दर्शाती आपकी कविता असर करती है और आपकी कविताओं की संरचना एक अनूठा रूप ली होती हैं---आकर्षक और विचित्र...

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

कोमल भावो को सुन्दर शब्दों में पिरोया है आप ने,
नव वधू कि मनोभावों का अच्छा वर्णन है.
मै एक और भाव इस रचना में देखने क प्रयास कर रहा हूं जो सूफ़ियाना है, आपने भी शायद उसी भाव में लिखी है ये सुन्दर रचना!

shama said...

लियो जी ,
मै अपने ही कमेन्ट बॉक्स में उत्तर दे रही हूँ ...ताकि , हमारे अज़ीज़ पाठकों को सन्दर्भ समझ में आ जाय ..!

जैसे मै हमेशा कहती हूँ , मै , रचना कार ही नही ...! किसीभी रचनाकी , चाहे , गद्य हो या पद्य ...ना तो मुझे शैली की जानकारी रहती है , न अन्य किसी तंत्रों की ...यही 'सच ' है ...! यही वजह ,है ,कि , मुझे आप जैसे रचना कारों की रचनाएँ बेहद आकर्षित करती हैं ...मै इन रचनायों का बेहद सम्मान करती हूँ ! यही कारन था ,कि , आपको मेरे ब्लॉग पे लिखनेके लिए आमंत्रित किया ...स्वार्थ है इसमे मेरा ...मेरे ब्लॉग का रूप निखरा ...!

There is nothing behind or between the lines...मेरी अपनी जीवनी लिखते समय , जब मैंने चंद वाक़यात लिखे , तो किसी ने कहा , ऐसा प्यार असली जीवन में नही होता ...ये सूफियाना है ....आप कहानी लिखते वक़्त , जीवन से निगडित क़िस्से बयाँ करें...! जबकि , जो लिख रही थी , वो हकीकत थी ...!
( अक्सर, मै हर कड़ी के पहले , एक छोटी-सी कविता लिख देती, जिसमे, उस कड़ी का निचोड़ होता...'वो महकी कली थी',तथा उपरोक्त रचना, उसी कथ्य का हिस्सा थे....इस रचना में मैंने, 'मै' हटाके ,'वो' लिख दिया...जब मै, ट्रेन में बैठ अपने ससुराल जा रही थी...तब की मनो दशा का ये वर्णन है...ये भी सच है,कि, मै सीधे नेट पे लिख देती हूँ..मेरे पास अपनी किसी डायरी या नोट बुक में लिखा हुआ कुछ नही होता..!)

मै आपसे सीखना चाहूँगी , कि , जब आप सूफियाना कहते हैं , तो उसका क्या मतलब होता है ? क्या ये भाव , जैसे , मीरा के भजनों में होते हैं , या ," ये इश्क़ ,इश्क़ है ..." इस तरह की क़व्वाली में होते हैं , जो किसी दैवी शक्ती से निगडित होते हैं ?

आप प्लीज़ बुरा न माने ...मै सही में सीखना चाहती हूँ ...किसे पूछूँ ये सवाल मनमे उठता रहा ...आज जब आपने कह डाला तो लगा , आपसे बेहतर कौन हो सकता है ?
अब अपना अज्ञान- पूरा बेनक़ाब कर दिया है ...नक़ाब तो कभी पहनाही नही , वैसे !
अपने प्रोफाइल में भी मैंने लिख दिया था,कि, technicalities से मै अनजान हूँ...! पाठकों से एक संवाद चाहती हूँ...उसी इरादे से लिख ने आयी हूँ...!

मै एक सेल्फ taught फाइबर आर्टिस्ट हूँ, interior designer, landscaper, आदि, आदि हूँ..फाइबर आर्ट को भी ये सज्ञा, एक अमेरिकन embroidery गिल्ड ने दी...मुझे नही पता था,कि, मै जो काम करती हूँ, उसे क्या नाम देना चाहिए..!
http://fiberart-thelightbyalonelypath.blogspot.com

http://shama-baagwaanee.blogspot.com

http://chindichindi-thelightbyalonelypath.blogspot.com

http://gruhsajja-thelightbyalonelypath.blogspot.com

http://paridhaan-thelightbyalonelypath.blogspot.com

ये मेरे रोज़ी रोटी के ज़रिये रहे हैं...आज भी हैं!

हाल ही में मैंने फ़िल्म making का एक course किया, लेकिन, उसपे अभी तक खर्च किया है..कमाया नही...! और गर मै,इस देश में फैले आतंक वाद से लड़ना चाहती हूँ, इस माध्यम के ज़रिये,तो शायद मुझे मेरी सारी जमा पूँजी खर्च के भी फ़िल्म या डॉक्युमेंटरी बनती नज़र नही आ रही...लेकिन लगी हुई..कोशिशों में!!!

शायद आप इतने लंबे चौडे जवाब को पढ़ते,पढ़ते बेजार भी हो गए होंगे....! सवाल तो छोटा-सा था...जवाब में मैंने पूरी राम कहानी सुना दी....फिर एक बार क्षमा करें...!

M VERMA said...

सुन्दर अभिव्यक्ति की अंतर्कथा है आपकी कविता.

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

शमा जी,
अव्वल तो वही बात के ’रचनाकार’ तो इस कायनात में एक ही है,वो जो सब कुछ बनाने वाला है.हम सब,और जिसे हम अपनी रचनायें कहते फ़िरते हैं,दरअसल उसी के नूरानी पैगाम हैं जिन को हम physical form में बदलने का काम भर करते हैं.

अब ये कविता ,पिन्टिगं,और कुछ या कभी कभी सिर्फ़ एक सोते बच्चे की मुस्कान के रूप में हमें दिखलाई पडती है.

मेरा सूफ़ियाना अर्थ से सिर्फ़ इतना मतलब था कि,क्यों कि मै न तो एक स्त्री हूं ,और न उसके जैसा कोमल मन रखता हूं,मेरी समझ प्रेम के बारे में,और उन भावनाओ कि मामले में जो आपकी कविता में नज़र आतीं हैं, कम है.

मैने उन भावनाओ को समझने की कोशिश की, ’रूह और परवरदिगार’के मिलन के ताल्लुक से.क्यों कि सिवाय इन दोनों के अलावा सब कुछ सिर्फ़ एक ख्याब से बढ कर कुछ नहीं.यही मेरी समझ में सूफ़ियाना नज़रिया है.

जहां तक रहनुमाई का ताल्लुक है, मैने पहले भी लिखा है कि,

"कौन मसीहा है यहां और कौन यहां रहबर है,
हर इन्सान को इस राह पे अकेले ही चलना होगा."

आपकी सलाहियतों के बारे में जान कर खुशी हुई,ईश्वर करे आप को अपने सभी endeavours में कामयाबी मिले,और आप समाज और मानव मात्र की खिदमत कर पायें.आप जैसी विदूषी महिला ज़रूर अपने मकसद में कामयाब होगी,ऐसी मेरी मालिक से दुआ है.

स्वप्न मञ्जूषा said...

सुन्दर अभिव्यक्ति !!!