Thursday, July 12, 2012
Sunday, March 25, 2012
चेहरे! कविता पर भी
चेहरे!
अजीब,
गरीब,
और हाँ, अजीबो गरीब!
मुरझाये,
कुम्हलाये,
हर्षाये,
घबराये,
शर्माये,
हसींन,
कमीन,
बेहतरीन,
नये,
पुराने
जाने,
पहचाने,
और हाँ ’कुछ कुछ’ जाने पहचाने,
अन्जाने,
बेगाने,
दीवाने
काले-गोरे,
और कुछ न काले न गोरे,
कुछ कि आँखों में डोरे,
कोरे,
छिछोरे,
बेचारे,
थके से,
डरे से,
अपने से,
सपने से,
मेरे,
तेरे,
न मेरे न तेरे,
आँखें तरेरे,
कुछ शाम,
कुछ सवेरे,
घिनौने,
खिलौने,
कुछ तो जैसे
गैईया के छौने,
चेहरे ही चेहरे!
पर कभी कभी,
मिल नही पाता,
अपना ही चेहेरा!
अक्सर भाग के जाता हूँ मैं,
कभी आईने के आगे,
और कभी नज़दीक वाले चौराहे पर!
हर जगह बस अक्श है,परछाईं है,
सिर्फ़ भीड है और तन्हाई है !
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Wednesday, February 22, 2012
Sunday, January 8, 2012
ज़हर का इम्तिहान
बुज़ुर्गोने कहा, ज़हरका,
इम्तेहान मत लीजे,
हम क्या करे गर,
अमृतके नामसे हमें
प्यालेमे ज़हर दीजे !
अब तो सुनतें हैं,
पानीभी बूँदभर चखिए,
गर जियें तो और पीजे !
हैरत ये है,मौत चाही,
ज़हर पीके, नही मिली,
ज़हर में मिलावट मिले
तो बतायें, क्या कीजे?
तो सुना, मरना हैही,
तो बूँदभर अमृत पीजे,
जीना चाहो , ज़हर पीजे!
इम्तेहान मत लीजे,
हम क्या करे गर,
अमृतके नामसे हमें
प्यालेमे ज़हर दीजे !
अब तो सुनतें हैं,
पानीभी बूँदभर चखिए,
गर जियें तो और पीजे !
हैरत ये है,मौत चाही,
ज़हर पीके, नही मिली,
ज़हर में मिलावट मिले
तो बतायें, क्या कीजे?
तो सुना, मरना हैही,
तो बूँदभर अमृत पीजे,
जीना चाहो , ज़हर पीजे!
Wednesday, November 30, 2011
दुल्हनिया...!
सहमी सिमटी है दुल्हनिया,
अभी छलके हैं इस के नैना,
यादों में है बाबुल अपना!
आँखों से कजरा बह गया,
बालों में गजरा मुरझाया,
हैं हिनाभरी हथेलियाँ,
याद आ रही हैं सहेलियाँ...
दादी औ माँ में उलझा है ज़ेहन,
उसमे बसा है नैहरका आँगन,
धूप में बरसती सावनी फुहार,
फूल बरसाता हारसिंगार...
गीली मिट्टी पे मोलश्री के फूल,
नीम के तिनकों में पिरोये हार,
मेलों के तोहफे,बहनका दुलार,
अभी यही है,इसका सिंगार!
Monday, November 14, 2011
शायद इसी लिये!
तेरे थरथराते कांपते होठों पर,
मैंने कई बार चाहा कि,
अपनी नम आंखे,
रख दूं!
पर,
तभी बेसाख्ता याद आया
भडकती आग पर,
घी नही डाला करते!
मुझे यकीं है के,
तेरे भी ज़ेहन में,
अक्सर आता है,
ये ख्याल के
तू भी,
कभी तो!
मेरे ज़ख्मों पे दो बूंद
अपने आंसुओं की गिरा दे,
पर मैं जानता हूं
के तू भी डरता है,
भडकती आग में
घी डालने से!
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