बुज़ुर्गोने कहा, ज़हरका,
इम्तेहान मत लीजे,
हम क्या करे गर,
अमृतके नामसे हमें
प्यालेमे ज़हर दीजे !
अब तो सुनतें हैं,
पानीभी बूँदभर चखिए,
गर जियें तो और पीजे !
हैरत ये है,मौत चाही,
ज़हर पीके, नही मिली,
ज़हर में मिलावट मिले
तो बतायें, क्या कीजे?
तो सुना, मरना हैही,
तो बूँदभर अमृत पीजे,
जीना चाहो , ज़हर पीजे!
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Sunday, January 8, 2012
Saturday, June 12, 2010
ज़हेरका इम्तेहान.....
इम्तेहान मत लीजे,
हम क्या करे गर,
अमृतके नामसे हमें
प्यालेमे ज़हर दीजे !
अब तो सुनतें हैं,
पानीभी बूँदभर चखिए,
गर जियें तो और पीजे !
हैरत ये है,मौत चाही,
ज़हर पीके, नही मिली,
ज़हर में मिलावट मिले
तो बतायें, क्या कीजे?
तो सुना, मरना हैही,
तो बूँदभर अमृत पीजे,
जीना चाहो , ज़हर पीजे!
Monday, June 1, 2009
.....जीवन नही !
Pradeep Kumar said...
shama ji ghazal post kar rahaa hoon -
अगर ज़िन्दगी में कोई ग़म नहीं है ,
तो ख़ुशी ही ख़ुशी भी जीवन नहीं है.
मैं इंसान उसको भला कैसे कह दूं
किसी के लिए आँख गर नम नहीं है.
ग़म के बिना कोई जन्नत भले हो.
वो जीवन नहीं है वो जीवन नहीं है .
बेशक मोहब्बत है अहसास दिल का,
न होगा जहां कोई धड़कन नहीं है .
कहाँ तक छुपायेगा इंसान खुद को ,
जो फितरत छुपा ले वो दर्पण नहीं है .
उठो एक कोशिश तो फिर करके देखो,
न हल हो कोई ऐसी उलझन नहीं है.
जो अपनों ने मुझको दिए अपने बनकर ,
उन ज़ख्मों को भर दे वो मरहम नहीं है .
कहाँ तक ज़माने के कांटे बटोरूँ ,
जो सब को छुपा ले वो दामन नहीं है.
ग़म-औ- ख़ुशी का संगम है दुनिया ,
कोई गर न हो तो ये जीवन नहीं है.
दिल की तमन्ना बयाँ कर ही डालो,
सुनके न पिघले वो नशेमन नहीं है .
मोहब्बत है गर बयाँ भी वो होगी ,
ये दिल में छुपाने से छुपती नहीं है.
बहुत बातें मुझको करनी हैं तुमसे ,
कि एक बार मिलना काफी नहीं है .
अँधेरा बढ़ा तो फिर है हाज़िर प्रदीप .
जो रोशन न हो ऐसा गुलशन नहीं है .
shama ji ghazal post kar rahaa hoon -
अगर ज़िन्दगी में कोई ग़म नहीं है ,
तो ख़ुशी ही ख़ुशी भी जीवन नहीं है.
मैं इंसान उसको भला कैसे कह दूं
किसी के लिए आँख गर नम नहीं है.
ग़म के बिना कोई जन्नत भले हो.
वो जीवन नहीं है वो जीवन नहीं है .
बेशक मोहब्बत है अहसास दिल का,
न होगा जहां कोई धड़कन नहीं है .
कहाँ तक छुपायेगा इंसान खुद को ,
जो फितरत छुपा ले वो दर्पण नहीं है .
उठो एक कोशिश तो फिर करके देखो,
न हल हो कोई ऐसी उलझन नहीं है.
जो अपनों ने मुझको दिए अपने बनकर ,
उन ज़ख्मों को भर दे वो मरहम नहीं है .
कहाँ तक ज़माने के कांटे बटोरूँ ,
जो सब को छुपा ले वो दामन नहीं है.
ग़म-औ- ख़ुशी का संगम है दुनिया ,
कोई गर न हो तो ये जीवन नहीं है.
दिल की तमन्ना बयाँ कर ही डालो,
सुनके न पिघले वो नशेमन नहीं है .
मोहब्बत है गर बयाँ भी वो होगी ,
ये दिल में छुपाने से छुपती नहीं है.
बहुत बातें मुझको करनी हैं तुमसे ,
कि एक बार मिलना काफी नहीं है .
अँधेरा बढ़ा तो फिर है हाज़िर प्रदीप .
जो रोशन न हो ऐसा गुलशन नहीं है .
Friday, May 1, 2009
माँ तेरा आँचल....
गर्दूं-गाफिल said... माँ तेरा आँचल कहाँ खो गया
तेरा लाडला अब तनहा हो गया
जीवन की दोपहरी में जलती रही
मेरे जीवन को उजला करती रही
उम्र की साँझ में जब अकेली हुई
थक कर भी मुझ पर निछावर रही
जिसकी गोदी में शीतल होता था मै
मेरी ममता का सागर कहाँ सो गया
नीड़ ममता का छोडा ,,छौना उड़ा
कौर जिसको खिलाये ,,सलोना मुड़ा
फिर भी देवालयों में ..बिसूरती रही
प्रार्थनाएं मेरे सुख की ही करती रही
जो लेकर बलैयां निखर जाता ..था
वो आरत का दीपक कहाँ खो गया
मेरी" नैहर" इस कहानीपे टिप्पणीके रूपमे "गाफिल" जीने ये रचना लिखी...बेहद शुक्रगुजार हूँ...पढ़ते, पढ़ते मेरी आँखें नम हो गयीं...बोहोत ही उमदा अल्फाज़ हैं....गाफील जी आप बेहतरीन लिखते हैं...
तेरा लाडला अब तनहा हो गया
जीवन की दोपहरी में जलती रही
मेरे जीवन को उजला करती रही
उम्र की साँझ में जब अकेली हुई
थक कर भी मुझ पर निछावर रही
जिसकी गोदी में शीतल होता था मै
मेरी ममता का सागर कहाँ सो गया
नीड़ ममता का छोडा ,,छौना उड़ा
कौर जिसको खिलाये ,,सलोना मुड़ा
फिर भी देवालयों में ..बिसूरती रही
प्रार्थनाएं मेरे सुख की ही करती रही
जो लेकर बलैयां निखर जाता ..था
वो आरत का दीपक कहाँ खो गया
मेरी" नैहर" इस कहानीपे टिप्पणीके रूपमे "गाफिल" जीने ये रचना लिखी...बेहद शुक्रगुजार हूँ...पढ़ते, पढ़ते मेरी आँखें नम हो गयीं...बोहोत ही उमदा अल्फाज़ हैं....गाफील जी आप बेहतरीन लिखते हैं...
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