Saturday, July 3, 2010

गुलों से बात! अभी सिर्फ़ "कविता" पर!

"सच में" www.sachmein.blogspot.com


अज़ीब शक्स है वो गुलो से बात करता है,
अपनी ज़ुरूफ़ से भरे दिन को रात करता है.

वो जो कहता है भोली प्यार की बातें,
खामोश हो के खुदा भी समात करता है,

मां बन के कभी उसके प्यार का जादू
एक जर्रे: को भी  काइनात करता है,

मेरे प्यार को वो भला कैसे जानेगा?
जब देखो मूंह बनाके बात करता है! 

22 comments:

अजय कुमार said...

मां बन के कभी उसके प्यार का जादू
एक जर्रे: को काइनात करता है,

अनमोल पंक्तियां ।

Jandunia said...

खूबसूरत प्रयास

Anonymous said...

सुंदर रचना ।



->सुप्रसिद्ध साहित्यकार और ब्लागर गिरीश पंकज जी का साक्षात्कार पढने के लिऐ यहाँ क्लिक करेँ

Udan Tashtari said...

बढिया!

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

Jandunia said...
खूबसूरत प्रयास

July 3, 2010 11:23 AM

Udan Tashtari said...
KAVITA ब्लॉग क्या चिट्ठाजगत या एग्रीगेटर पर नहीं है क्या?

पूछा इसलिए कि आप यहाँ से लिंक दे रहे हैं.

July 3, 2010 7:05 PM

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

माननीय समीर जी,
Main showroom का माल branch शौप से बेचने का प्रयास कर रहा था!!!

सुमन कुमार said...

इन शानदार रचनाओं को पढवाने का शुक्रिया।

सुमन कुमार said...

इन शानदार रचनाओं को पढवाने का शुक्रिया।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत गज़ल.

shama said...

वो जो कहता है भोली प्यार की बातें,
खामोश हो के खुदा भी समात करता

Bahut hee khoobsoorat khayal hai..!

दिगम्बर नासवा said...

मां बन के कभी उसके प्यार का जादू
एक जर्रे: को काइनात करता है,

सुभान अल्ला .. कितनी प्यारी ग़ज़ल है ...
सच में माँ के प्यार में वो शक्ति होती ही जो जर्रे को कायनत कर सके ...

दिगम्बर नासवा said...

मां बन के कभी उसके प्यार का जादू
एक जर्रे: को काइनात करता है,

सुभान अल्ला .. कितनी प्यारी ग़ज़ल है ...
सच में माँ के प्यार में वो शक्ति होती ही जो जर्रे को कायनत कर सके ...

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

अच्छे शेर हुए हैं...
अज़ीब शख्स है वो गुलो से बात करता है,
अपनी ज़ुरूफ़ से भरे दिन को रात करता है.
मतला शानदार.
मां बन के कभी उसके प्यार का जादू
एक जर्रे को काइनात करता है.
हासिल-ग़ज़ल शेर.

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

आप लोगो का अहसानमंद हूं, ’आम लफ़्ज़ों’ को "गज़ल" बना देते है, आप लोग अपनी मोहबब्त और तारीफ़ से!

Maria Mcclain said...
This comment has been removed by a blog administrator.
वीरेंद्र सिंह said...

Mast...padhkar maza aa gaya.

वीरेंद्र सिंह said...

Mast...padhkar maza aa gaya.

shama said...

Aaj dobara aapki chand rachnayen padhin....aap apni gudime se kya gazab ratn chunte hain...'kavita'blog shringarit inheen se hai...

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

Thanks!

Dr.R.Ramkumar said...

वर्तमान प्रस्तुति 'गुलो से बात' का यह शेर बहुत अच्छा है

मां बन के कभी उसके प्यार का जादू
एक जरेर्रू को काइनात करता है,


और पुरानी प्रस्तुतियों की सैर भी खुशनुमा है....
'नसीब'
जिन्दगी अच्छी है,
पर अजीब है न?
जो बुरा है,
कितना लजीज है न?
गुनाह कर के भी वो सुकून से है,
अपना अपना नसीब है न?
दर्द पास आयेगा कैसे,
तू तो मेरे करीब है न?

मैं इसकी मासूम सी पूछ ‘‘है न’’ पर फिदा हूं ..शमा जी क्या कहने..है न कहने का मासूम अंदाज यानी ‘पूछ’ वाकई असरदार है।
& this


"जिन्दगी"

जिन्दगी को उसकी कहानी कहने देते हैं,
चलो हम अपने शिकवे रहने देते है।
बुजुर्गों पे चलो इतना अहसान करें
बुढापे में उन्हे पुराने घर में रहने देते है।

वाणी गीत said...

माँ बनके उसके प्यार का जादू ...जर्रे को कायनात करता है ..

हर माँ खुदा ही है और उसकी गोद में खुदाई ...गोद से बाहर आते ही दुनिया के रंग बेरंग उसे क्या से काया बना देते हैं ...क्यूँ ना उम्र भर माँ की गोद का आसरा ही रहे ...

मेरे प्यार को वो भला कैसे जानेगा?
जब देखो मूंह बनाके बात करता है!
:):)

Neeraj Kumar said...

आपके शे'रों में एक दर्द होता है जो हलके-फुल्के शब्दों में भी चुभता है दिल को...