Saturday, June 12, 2010

ज़हेरका इम्तेहान.....

बुज़ुर्गोने कहा, ज़हरका,
इम्तेहान मत लीजे,
हम क्या करे गर,
अमृतके नामसे हमें
प्यालेमे ज़हर दीजे !
अब तो सुनतें हैं,
पानीभी बूँदभर चखिए,
गर जियें तो और पीजे !
हैरत ये है,मौत चाही,
ज़हर पीके, नही मिली,
ज़हर में मिलावट मिले
तो बतायें, क्या कीजे?
तो सुना, मरना हैही,
तो बूँदभर अमृत पीजे,
जीना चाहो , ज़हर पीजे!

7 comments:

vandana gupta said...

वाह्…………………बहुत ही गहरी और सही बात कह दी……………अति सुन्दर्।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरती से कही अपनी बात

वाणी गीत said...

मरना चाहो अमृत पीजो
जीना चाहो जहर पीजो ...
यही है दुनिया की उलटबांसी ...यही तो होता है ...
जहर से बच जाने वाले अमृत से मर जाते हैं ..!!

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

वाह!विडम्बनाओं का सच्चा चित्रण!

Vinay said...

वाह वाह वाह वाह वाह वाह... ∞

वीरेंद्र सिंह said...

Very good.

वीरेंद्र सिंह said...

Very good.