Wednesday, January 20, 2010

दो क्षणिकाएँ..

१)बहारों के लिए...

बहारों के लिए आँखे तरस गयीं,
खिज़ा है कि, जाती नही...
दिल करे दुआए रौशनी,
रात है कि ढलती नही...

२)शाख से बिछडा...

शाखसे बिछडा पत्ता हूँ कोई,
सुना हवा उड़ा ले गयी,
खोके मुझे क्या रोई डाली?
मुसाफिर बता, क्या वो रोई?

3 comments:

वाणी गीत said...

आपकी क्षणिकाएं मुझे उदास करती है ...
सच्चे दिल से दुआ है ...अंधरे गम के ढलते जाए ...एक नया वसंत सवेरा हो ...!!

रश्मि प्रभा... said...

aankhon me kuch nami si hai....tabhi to os si kshanikayen hain

दिगम्बर नासवा said...

शाखसे बिछडा पत्ता हूँ कोई,
सुना हवा उड़ा ले गयी,
खोके मुझे क्या रोई डाली?
मुसाफिर बता, क्या वो रोई? .....

सूखे पत्ते के दिल की दास्तान ............. वैसे कौन किसके लिए रोता है ऐ दोस्त, सबको अपनी ही किसी बात पर रोना आया ......