Monday, January 4, 2010

खिलने वाली थी...

खिलनेवाली थी, नाज़ुक सी
डालीपे नन्हीसी कली...!
सोंचा डालीने,ये कल होगी
अधखिली,परसों फूल बनेगी..!
जब इसपे शबनम गिरेगी,
किरण मे सुनहरी सुबह की
ये कितनी प्यारी लगेगी!
नज़र लगी चमन के माली की,
सुबह से पहले चुन ली गयी..
खोके कोमल कलीको अपनी
सूख गयी वो हरी डाली....

( bhroon hatya ko maddenazar rakhte hue ye rachna likhee thee..)

10 comments:

Yogesh Verma Swapn said...

umda rachna.

अमृत कुमार तिवारी said...

बेहद ही करुण अभिव्यक्ति...

वन्दना अवस्थी दुबे said...

सच है, ये अजन्मी बेटियां कोमल कलियां ही तो होतीं हैं, जिन्हें खिलने से पहले ही तोड लिया जाता है, या तोडने की कोशिश की जाती है.

अमृत कुमार तिवारी said...

बेहद ही भावपूर्ण रचना....

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अच्छे भाव हैं कविता के...
मगर यही तो विंडबना है कि कलियों को खोकर भी हरी डालियाँ सूख नहीं जातीं सिर्फ गमगीन होती हैं।
सूख जातीं तो माली कलियाँ चुनने की हिमाकत न करता।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

कविता जी,
'नज़र लगी चमन के माली की,
सुबह से पहले चुन ली गयी..
खोके कोमल कलीको अपनी
सूख गयी वो हरी डाली'
कई दुख बयान कर दिये आपने
भ्रुण हत्या
बताना शायद ज़रूरी भी नहीं था..
पंक्ति अपना भाव स्पष्ट कर रही है..
बधाई
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

Wah! Sunder bhavpurn rachna hai!

vandana gupta said...

bahut hi gahan aur bhavmayi abhivyakti.

दिगम्बर नासवा said...

सुंदर रचना .......बेहद भाव पूर्ण अभिव्यक्ति

Prem said...

बहुत दिनों बाद आपको पढ़ा अच्छा लगा नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें