Sunday, January 8, 2012

ज़हर का इम्तिहान

बुज़ुर्गोने कहा, ज़हरका,
इम्तेहान मत लीजे,
हम क्या करे गर,
अमृतके नामसे हमें
प्यालेमे ज़हर दीजे !
अब तो सुनतें हैं,
पानीभी बूँदभर चखिए,
गर जियें तो और पीजे !
हैरत ये है,मौत चाही,
ज़हर पीके, नही मिली,
ज़हर में मिलावट मिले
तो बतायें, क्या कीजे?
तो सुना, मरना हैही,
तो बूँदभर अमृत पीजे,
जीना चाहो , ज़हर पीजे!

7 comments:

M VERMA said...

ज़हर पीके, नही मिली,
ज़हर में मिलावट मिले
पहले मिलावट के इस जहर को दूर कीजे

दिगम्बर नासवा said...

Jeena hai to jahar peena padhta hai ... Bahut khoob ...

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया!!

संजय भास्‍कर said...

एक सम्पूर्ण पोस्ट और रचना!
यही विशे्षता तो आपकी अलग से पहचान बनाती है!

वाणी गीत said...

जीवन है अगर ज़हर तो पीना ही पड़ेगा !
बेहतरीन !

सागर said...

bhaut hi sahi kaha aapne....

Naveen Mani Tripathi said...

तो सुना, मरना हैही,
तो बूँदभर अमृत पीजे,
जीना चाहो , ज़हर पीजे!

bahut hi gahan chintan ke sath sarthak rachana ....badhai Shama ji