खामोश ज़ुबाँ, बिसूरते हुए मुँह में,
कब ,क्यो,किधर,कहाँ, कैसे,
इन सवालात के घेरे में,
अपनी तो ज़िंदगानी घिरी,
अब, इधर, यहाँ, यूँ,ऐसे,
जवाब तो अर्थी के बाद मिले,
क्या गज़ब एक कहानी बनी,
लिखी तो किसी की रोज़ी बनी,
ता-उम्र हम ने तो फ़ाक़े किए,
कफ़न ओढ़ा तो चांदी बनी...
एक पुरानी रचना पेश की है...माफ़ी चाहती हूँ!
12 comments:
क्या गज़ब एक कहानी बनी,
लिखी तो किसी की रोज़ी बनी,
ता-उम्र हम ने तो फ़ाक़े किए,
कफ़न ओढ़ा तो चांदी बनी...
मार्मिक रचना
अब, इधर, यहाँ, यूँ,ऐसे,
जवाब तो अर्थी के बाद मिले,
क्या गज़ब एक कहानी बनी,
लिखी तो किसी की रोज़ी बनी,
waah !
old is gold.......bhavnatmak rachana
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (7-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना
ता-उम्र हम ने तो फ़ाक़े किए,
कफ़न ओढ़ा तो चांदी बनी...
वाह क्या गजब लिखा है आपने ... बहुत सुन्दर !
बहुत गहरी अभिव्यक्ति |बधाई
आशा
कविता बेशक पुरानी है, पर पढ़ने वालों के लिए तो नयी...... बेहतरीन.
ता-उम्र हम ने तो फ़ाक़े किए,
कफ़न ओढ़ा तो चांदी बनी...
बहुत ही अच्छी रचना बधाई स्वीकार करें .....
ता-उम्र हम ने तो फ़ाक़े किए,
कफ़न ओढ़ा तो चांदी बनी...
Jeete ji koi kadr nahi hoti ... marne ke baad hi sab pahchaante hain ..
गज़ब की रचना लिखी है. ओल्ड इस गोल्ड की तरह, जैसा कि आपने कहा कि 'बहुत पुरानी' रचना पेश की है.!
---
मैं शादी क्यों करूं...? Its All About Marriage DEBATE @ उल्टा तीर
waah kya khoob likha hai aapne , dard ek naye ahsaas me hai mukhar ho utha hia ji ..
badhayi
मेरी नयी कविता " परायो के घर " पर आप का स्वागत है .
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/04/blog-post_24.html
Post a Comment