Monday, February 28, 2011

दुआ बहार की! "कविता" पर भी!




क्या कह दूँ के तुम्हें करार आ जाये,
मेरी बातों पे तुम्हें ऎतबार आ जाये॥

दिल इस दुनिया से क्यूँ नहीं भरता,
उनकी बेरूखी पे भी प्यार आ जाये।

दर्द इतने मैं कहाँ छुपाऊँ भला,
मौत से कहो एक बार आ जाये।

वीरानियाँ भी तो तेरा हिस्सा हैं,
या खुदा इधर भी बहार आ जाये।

6 comments:

OM KASHYAP said...

क्या कह दूँ के तुम्हें करार आ जाये,
मेरी बातों पे तुम्हें ऎतबार आ जाये॥
इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूब ..सुन्दर गज़ल

Anamikaghatak said...

bahut sundar likha hai aapen.....man ko chhoo gayee

ABHIVYAKTI said...

dard itne main kahan chupaaon bhala
maut se kaho ik baar aa jaye
beautiful selection of words!!

ABHIVYAKTI said...

dard itne main kahan chupaaon bhala
maut se kaho ik baar aa jaye
beautiful selection of words!!

shama said...

Phir ek baar gazab kee gazal kahee hai! Baar baar padhene kaa man karta hai!