लिओ जी पर इस ब्लॉग का भार सौंप मै निश्चिन्त हूँ ....पर कभी कभी बड़ा अपराधबोध होता है...एक अदना-सी रचना पोस्ट कर रही हूँ...
हौसले बुलंद होते हैं,
लोग जब जवान होते हैं,
शमा बुझही जाती है,
नेह जब तमाम होते हैं,
क्यों उम्र दराज़ी की दुआ देते हैं?
इन्सां जीते जी परेशान होते हैं..
Monday, July 26, 2010
Friday, July 23, 2010
इंतेहा-ए-दर्द! "Kavita" पर!
दर्द को मैं ,अब दवा देने चला हूं,
खुद को ही मैं बद्दुआ देने चला हूं!
बेवफ़ा को फ़ूल चुभने से लगे थे,
ताज कांटो का उसे देने चला हूं!
मर गया हूं ये यकीं तुमको नहीं है,
खुदकी मय्यत को कांधा देने चला हूं!
Sunday, July 11, 2010
तितलियां और चमन!
चमन में गुलों का नसीब होता है,
जंगली फ़ूल पे कब तितिलियां आतीं है।
कातिल अदा आपकी निराली है,
हमें कहां ये शोखियां आतीं हैं।
एक अरसे से मोहब्बत खोजता हूं,
अब कहां तोतली बोलियां आतीं है!
गद्दार हमसाये पे न भरोसा करना,
प्यार के बदले में, गोलियां आतीं हैं।
घर मेरा खास था, सो बरर्बाद हुया,
हर घर पे कहां बिजलियां आतीं हैं?
Will also be available soon on www.sachmein.blogspot.com
जंगली फ़ूल पे कब तितिलियां आतीं है।
कातिल अदा आपकी निराली है,
हमें कहां ये शोखियां आतीं हैं।
एक अरसे से मोहब्बत खोजता हूं,
अब कहां तोतली बोलियां आतीं है!
गद्दार हमसाये पे न भरोसा करना,
प्यार के बदले में, गोलियां आतीं हैं।
घर मेरा खास था, सो बरर्बाद हुया,
हर घर पे कहां बिजलियां आतीं हैं?
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Saturday, July 3, 2010
गुलों से बात! अभी सिर्फ़ "कविता" पर!
"सच में" www.sachmein.blogspot.com
अज़ीब शक्स है वो गुलो से बात करता है,
अपनी ज़ुरूफ़ से भरे दिन को रात करता है.
वो जो कहता है भोली प्यार की बातें,
खामोश हो के खुदा भी समात करता है,
मां बन के कभी उसके प्यार का जादू
एक जर्रे: को भी काइनात करता है,
मेरे प्यार को वो भला कैसे जानेगा?
जब देखो मूंह बनाके बात करता है!
अज़ीब शक्स है वो गुलो से बात करता है,
अपनी ज़ुरूफ़ से भरे दिन को रात करता है.
वो जो कहता है भोली प्यार की बातें,
खामोश हो के खुदा भी समात करता है,
मां बन के कभी उसके प्यार का जादू
एक जर्रे: को भी काइनात करता है,
मेरे प्यार को वो भला कैसे जानेगा?
जब देखो मूंह बनाके बात करता है!
नसीब !"कविता" पर भी!
ज़िन्दगी अच्छी है,
पर अज़ीब है न?
जो बुरा है,
कितना लज़ीज़ है न?
गुनाह कर के भी वो सुकून से है,
अपना अपना ज़मीर, है न?
मैं तुझीसे मोहब्बत करता हूं
आखिर मेरा भी रकीब है न?
कैसे उठाऊं मै नाज़ तेरा,
कांधे पर सलीब है न?
उसका दुश्मन कोई नहीं है यहां
वो सच मे कितना बदनसीब है न?
सोना चांदी बटोरता रहता है,
बेचारा कितना गरीब है न?
दर्द पास आयेगा कैसे,
तू तो मेरे करीब है न?
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