Thursday, October 8, 2009

तलाश--एक क्षणिका...

रही तलाश इक दिए की,
ता-उम्र इस 'शमा' को,
कभी उजाले इतने तेज़ थे,
की, दिए दिखायी ना दिए,
या मंज़िले जानिब अंधेरे थे,
दिए जलाये ना दिए गए......

9 comments:

रश्मि प्रभा... said...

gajab ki abhivyakti

Yogesh Verma Swapn said...

sunder abhivyakti.

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

Kamaal!

वन्दना अवस्थी दुबे said...

वाह कमाल की अनुभूति- अभिव्यक्ति.

दिगम्बर नासवा said...

निः शब्द ....... कमाल का लिखा है .........

Murari Pareek said...

अति सुन्दर लोग इतने छोटे लब्जों में इतनी शानदार बात क्यूं नहीं करते !!!

Murari Pareek said...

वाह मिश्राजी ये है कोरा व्यंग मजेदार !! उम्दा बेहतरीन!!

ओम आर्य said...

जिन्दगी मे कुछ ऐसे दिये होते है जो अपने आप ही जल उठते है ......कहने का मतलब धैर्य को रखन पडेगा......

'sammu' said...

एक 'शमा' को किसी दिए की तलाश ?
साथ जलने को भी शायद हमसफ़र एक चाहिए .