चेहरे!
अजीब,
गरीब,
और हाँ, अजीबो गरीब!
मुरझाये,
कुम्हलाये,
हर्षाये,
घबराये,
शर्माये,
हसींन,
कमीन,
बेहतरीन,
नये,
पुराने
जाने,
पहचाने,
और हाँ ’कुछ कुछ’ जाने पहचाने,
अन्जाने,
बेगाने,
दीवाने
काले-गोरे,
और कुछ न काले न गोरे,
कुछ कि आँखों में डोरे,
कोरे,
छिछोरे,
बेचारे,
थके से,
डरे से,
अपने से,
सपने से,
मेरे,
तेरे,
न मेरे न तेरे,
आँखें तरेरे,
कुछ शाम,
कुछ सवेरे,
घिनौने,
खिलौने,
कुछ तो जैसे
गैईया के छौने,
चेहरे ही चेहरे!
पर कभी कभी,
मिल नही पाता,
अपना ही चेहेरा!
अक्सर भाग के जाता हूँ मैं,
कभी आईने के आगे,
और कभी नज़दीक वाले चौराहे पर!
हर जगह बस अक्श है,परछाईं है,
सिर्फ़ भीड है और तन्हाई है !
Also at 'सच मे' http://www.sachmein.blogspot.in/2012/03/blog-post.html
15 comments:
चेहरों के हुजूम में भी तनहा और एकाकी खोया सा अपना ही चेहरा...
सुन्दर अभिव्यक्ति!
वाह ... फिर से मज़ा आया पढ़ के ...
बहुत खूब
नूतन अंदाज़ और अंतर्द्वंद
Har jagah bas aks hai ,parchai hai ... bheed hai tanhai hai ...
Sunder bhaav ...
Bahut dinon baad aapne 'kavita' blog pe likha! Badaa hee achha laga!
shabd nahi mil rahe hai tarif ke liye...bahut badhiya
बुधवारीय चर्चा मंच पर है
आप की उत्कृष्ट प्रस्तुति ।
charchamanch.blogspot.com
हर जगह बस अक्श है,परछाईं है,
सिर्फ़ भीड है और तन्हाई है !
...bahut badiya...
एक दम नया अंदाज़ ...
शुभकामनायें आपको !
bahut sundar!!!!!!!!!!!!!!!!
एकदम नया अंदाज़ ....
शुभकामनायें आपको !
Kabhi socha na tha itni tarah ke chehre hote hain .. sundar rachana..
Rishi
http://manyyabsurdthoughts.blogspot.com/
haseen aur kameeen dono tarah ke:)
वाह आदमी तेरे कितने चेहेरे फिर भी कोई साफ नही ।
बहुत सुंदर
very nice :)
http://ekkavitaa.blogspot.in/2010/01/blog-post_6028.html
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