Monday, January 31, 2011

क़हत..


हर क़हत में हम सैलाब ले आये,
आँसूं सूख गए, क़हत बरक़रार रहे..

कहनेको तो धरती निर्जला है,
ज़रा दिलकी सरज़मीं देखो, कैसी है?

दर्द के हजारों बीज बोये हुए हैं,
पौधे पनप रहे हैं,फसल माशाल्लाह है!

5 comments:

Neeraj Kumar said...

अच्छा लिखा है लेकिन लिखना आपने भी कम कर दिया है...क्यूँ?

vandana gupta said...

दर्द के हजारों बीज बोये हुए हैं,
पौधे पनप रहे हैं,फसल माशाल्लाह है!

बेहद गहन अभिव्यक्ति।

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

दर्द के हजारों बीज बोये हुए हैं,
पौधे पनप रहे हैं,फसल माशाल्लाह है!
.....
वाह!

वाणी गीत said...

दर्द के बोये बीज पनप रहे है ...
दर्द ही दर्द इसलिए ही तो बिखरा है हर ओर !

mark rai said...

दर्द के हजारों बीज बोये हुए हैं,
पौधे पनप रहे हैं,फसल माशाल्लाह है!
....very nice....