Sunday, March 25, 2012

चेहरे! कविता पर भी



चेहरे!


अजीब,
गरीब,
और हाँ, अजीबो गरीब!
मुरझाये,
कुम्हलाये,
हर्षाये,
घबराये,
शर्माये,
हसींन,
कमीन,
बेहतरीन,
नये,
पुराने
जाने,
पहचाने,
और हाँ ’कुछ कुछ’ जाने पहचाने,
अन्जाने,
बेगाने,
दीवाने
काले-गोरे,
और कुछ न काले न गोरे,
कुछ कि आँखों में डोरे,


कोरे,
छिछोरे,
बेचारे,
थके से,
डरे से,
अपने से,
सपने से,
मेरे,
तेरे,
न मेरे न तेरे,
आँखें तरेरे,


कुछ शाम,
कुछ सवेरे,


घिनौने,
खिलौने,
कुछ तो जैसे
गैईया के छौने,


चेहरे ही चेहरे!


पर कभी कभी,
मिल नही पाता,
अपना ही चेहेरा!
अक्सर भाग के जाता हूँ मैं,


कभी आईने के आगे,
और कभी नज़दीक वाले चौराहे पर!


हर जगह बस अक्श है,परछाईं है,
सिर्फ़  भीड है और तन्हाई है !




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