Friday, April 16, 2010

स्याह अंधेरे..


कृष्ण पक्षके के स्याह अंधेरे
बने रहनुमा हमारे,
कई राज़ डरावने,
आ गए सामने, बन नज़ारे,
बंद चश्म खोल गए,
सचके साक्षात्कार हो गए,
हम उनके शुक्रगुजार बन गए...

बेहतर हैं यही साये,
जिसमे हम हो अकेले,
ना रहें ग़लत मुगालते,
मेहेरबानी, ये करम
बड़ी शिद्दतसे वही कर गए,
चाहे अनजानेमे किए,
हम आगाह तो हो गए....

जो नही थे माँगे हमने,
दिए खुदही उन्होंने वादे,
वादा फरोशी हुई उन्हीसे,
बर्बादीके जश्न खूब मने,
ज़ोर शोरसे हमारे आंगनमे...
इल्ज़ाम सहे हमीने...
ऐसेही नसीब थे हमारे....

7 comments:

vandana gupta said...

जो नही थे माँगे हमने,
दिए खुदही उन्होंने वादे,
वादा फरोशी हुई उन्हीसे,
बर्बादीके जश्न खूब मने,
ज़ोर शोरसे हमारे आंगनमे...
उफ़्फ़ बहुत ही दर्दनाक्………………………।सिर्फ़ दर्द ही दर्द है।

Shekhar Kumawat said...

जो नही थे माँगे हमने,
दिए खुदही उन्होंने वादे,
वादा फरोशी हुई उन्हीसे,
बर्बादीके जश्न खूब मने,
ज़ोर शोरसे हमारे आंगनमे...
इल्ज़ाम सहे हमीने...
ऐसेही नसीब थे हमारे....


BAHUT KHUB

SHEKHAR KUMAWAT

http://kavyawani.blogspot.com/

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

गम में डूबी बहुत मार्मिक रचना....भीगा भीगा सा मन हो गया ...

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

शब्दों का ये चयन आपकी अलग पहचान बना देता है................... बधाई

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

Vaah!

दिगम्बर नासवा said...

आपकी रचनाएँ अलग अंदाज़ की होती हैं ... बहुत ही कमाल की ...

Neeraj Kumar said...

अच्छी लगी रचना...